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भुट्टा खाने चलें






 

अम्मा सेंक रही है भुट्टे
लो फिर बड़े जतन से

लगा दहकने तबसे घर का
फिर से सिगड़ी चूल्हा
मटकाते आया है सावन
जबसे अपना कूल्हा!
हाथ जले ना,बिटिया लाना
चिमटा जरा सहन से

मीठी-मीठी सौंधी खुशबू
महक रहा हर कोना
आतुर हैं मिल जाये जल्दी
आधा हो या पौना
ललचाई नज़रों से देखे
बचपन बड़े लगन से

बारिश की रिमझिम बूँदें हैं
करतीं ता ता थैया
भीग भागकर आये घर को
मँझले छोटे भैया
गर्म चाय पी, खाकर भुट्टे
सारे हुए हुए मगन से

- सुधा आचार्य
१ सितंबर २०२०

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