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        कितनी सौगातें धरा पर

 
चैत्र की बैसाखी अपने मायके आई
कितनी सौगातें धरा पर साथ में लायी

आगमन नव वर्ष का होने लगा है
कोहरा भी रात का छँटने लगा है
दूर त्योहारों की घंटी बज रही है
देखिये खुशियों की लहरें उठ रही हैं
मंदिरों में
हर्ष की बेला मधुर छाई

राम नवमी की बधाई दे रहीं घड़ियाँ
जोड़तीं स्नेह की अद्भुत नवल कड़ियाँ
गीत मछुआरे अब गाने लगे हैं
मछलियों के भाव गरमाने लगे हैं
चैत की
कोमल हवा अब पाल को भाई

ढोल ताशे बज रहे है नभ में अब ऐसे
मायके में नव वधू के फेरे हों जैसे
इसी माह में प्रगटे थे हनुमान लला भी
राम जन्मे थे हुईं अद्भुत कला भी
मांगलिक धुन
चहुं दिशा में दी सुनाई

खेत में फसलें सुनहरी दिख रहीं हैं
काव्य कोई इस धरा पर लिख रहीं हैं
गीत प्रेमी धुन में अपने गाते जाते
टोलियों को नित नए किस्से सुनाते
पाँव की
थिरकन ने पैजनिया बजाई

- आभा सक्सेना ‘दूनवी’
१ अप्रैल २०२१

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