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देश: तीन चित्र
जनतंत्र की सोच को समर्पित कविताओं का संकलन
    (एक)

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें

भीनी भीनी खुशबू वाले रंग बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था

पकी सुनहली फसलों से जो
अबकी यह खलिहान भर गया
मेरे रग रग के शोणित की बूँदें
इसमें मुस्काती हैं

नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें

(दो)

मैं भी तो पहले देखा करता था सपने
साथी अब तो रंग ढंग ही बदल गए हैं
समझ गया हूँ

जीवन में इस धरा धाम का क्या महत्त्व है
कैसे कहलाता कोई धरती का बेटा
आसमान में सतरंगी बदल पर चढ़कर
कैसे जनकवि धान रोपता
समझ गया हूँ

कैसे जनकवि जमींदार के उन अमलों को
मार भगाता
हरे बाँस की हरी हरी लाठी लेकर
समझ गया हूँ

(तीन)

कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन के अंदर कई दिनों के बाद

चमक उठीं घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद

-नागार्जुन
२४ जनवरी २०११

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