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दुनिया बदली
जनतंत्र की सोच को समर्पित कविताओं का संकलन
    दुनिया बदली मगर अभी तक बैठे हैं अँधियारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

हर ऊँची दहलीज़ के भीतर
छुपा हुआ है धन काला
घूम रहे बेख़ौफ़ सभी वो
करते हैं जो घोटाला

कर्णधार समझे हम जिनको शामिल हैं बटमारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

जो सच्चे हैं वो चुनाव में
टिकट तलक न पाते हैं
मगर इलेक्शन जीत के झूठे
मंत्री तक बन जाते हैं

जिन पर हमको नाज़ था वो भी खड़े हुए लाचारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

जिनके मन काले हैं उनके
तन पर है उजली खादी
भ्रष्टाचार में डूब गए जो
बोल रहे हैं जय गाँधी

ऐसे ही चेहरे दिखते हैं रोज सुबह अख़बारों में
जाने कब सूरज आएगा बस्ती के गलियारों में

-देवमणि पाण्डेय
२४ जनवरी २०११

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