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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

       ज्योति सत्ता का गीत

Ñतिमिर के पाहुन किसी दिन और आकर भेट करना
इस समय मैं ज्योति को विस्तार देने में लगी हूँ।

इस दिये से ही हृदय संसार
सदियों से प्रकाशित।
यह सुनिश्चित रोशनी होने
नहीं पाई विभाजित।
यह मुझे संभावना, लय और स्वर तक सौंप बैठा
इसलिए मैं गीत को आकार देने में लगी हूँ।

तन तपाकर ही इसे यह देह
कंचन की मिली है।
बातियों को मुक्त मन से
संधि नर्तन की मिली है।
यह समय अंधियार के अवसान का है, यह समझकर
ज़िंदगी को मैं नया आधार देने में लगी हूँ।

दीप माटी के तुम्हारे
नाम की आराधनाएँ।
हो गई इतनी सजल
जैसे कि हो संवेदनाएँ।
इस अमावस में मनुज के पांव चलते थक न जायें
आस्थाओं का सकल उपचार देने में लगी हूँ।

ज्योति निर्झर में नहाकर
धरा आलोकित हुई है।
रश्मियों के साथ बंदनवार
भी पुलकित हुई है।
एक दीपक द्वार पर मैंने जलाया नाम जिसके
स्वस्तिकों का पुण्यमय अधिकार देने में लगी हूँ।

—निर्मला जोशी

 

ज्योति का यह पर्व

ज्योति का यह पर्व
ज्योति का यह पर्व,
युग युग तक सदा चलता रहे।
महापर्व यह दीप शिखाओं का,
उत्सव है जय जीवन का,
सबके मन में प्यार जगे,
उत्साह का यह उत्स
शतशत वर्ष तक बहता रहे।
देश को तुम आयु दो,
धन–धान्य से भरपूर कर दो,
विघ्न–विनाशक तुम्ही विनायक,
भव–बाधा दूर करो,
शुभ–आचार जन मन में,
पल–पल सदा रमता रहे
मन तिमिर में डूब कर,
माँगे सहारा जब कभी,
धैर्य का संकेत देकर,
सर्वदा देना उजाला,
स्नेह का यह दीप
जगमग हो सदा बढ़ता रहे।
दीप का यह पर्व,
युग युग तक सदा चलता रहे।

—उषा वर्मा

 
 

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