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दीपावली महोत्सव
२००४

दिये जलाओ
संकलन

ज्योति कलश छलके

 

शत दीप की शृंखला झलके
दीपोत्सव में अबकी बार
झिलमिल झिलमिल चारों तरफ
ज्योति कलश छलके
1
सुनहरी किरणों की आभा से
आलोकित हुई है जीवन आशा
लक्ष्य प्राप्त कर
सपने पूरे करें कल के
ज्योति कलश छलके
1
दीवाली पर हम सब मिलकर
दूर भगाएँ
अनिश्चितता के काले साए
और दिखाए सभी जन को
ज्ञान दीप का एक पर्याय बन के
ज्योति कलश छलके
1
एक दिया जले शहीदों के लिए
अर्पित किया है जिन्होंने जीवन अपना
ताकि मातृभूमि का पूरा हो सपना
उन्हें याद कर नम हो जाती है हमारी पलके
ज्योति कलश छलके
1
प्रदीप जले दीन गरीबों के भी घर
सिंचित हो नव ऊर्जा के स्वर
उन्हें भी गीत मिले, प्रीत मिले
जीने का संगीत मिले हलके
ज्योति कलश छलके
1
दीप जले उनके भी घर में
उठ ना सके जो अब तक
आए सुख समृद्धि का उजाला उनको
रह ना जाए वे अब भी हाथ मलके
ज्योति कलश छलके
1
दीवाली पर राम जी पधारे हैं घर
हर्षित हो गए हैं सभी के स्वर
स्वागत में करे पूजा अर्पण
फिर जीमे प्रसाद की 'पूरी' तलके
ज्योति कलश छलके
1
संध्या के नयनों में सुधी हो सुनहली
ऊषा की किरणों के स्पन्दन सी पहेली
दीवाली पर दीपाली से हो निशिता
बहती जाए लवलीन सरिता
आगे फुलझड़ी पटाखे जरा संभलके
ज्योति कलश छलके
1
—चंदन सेन 'सागर'

राम आज आएँगे क्या

मैं वृद्धा
पथ पर पुष्प–गुच्छ सजा
चौखट पर माटी के दीप जगा
बैठी हूँ आस भर अँखियों में
मेरे राम आज आएँगे क्या?
दृगशिथिल और सामर्थ्यहीन
भक्ति आसक्त मैं प्रभु प्रति लीन
रखती हूँ प्रेमदीप राहों में,
इन राहों पर चरण रख
मेरा जीवन सफल बनाएँगे क्या?
मेरे राम आज आएँगे क्या?
बुझती लौ सी मैं दीप दीन
कर प्रभु को निज हृदय आसीन,
पिसती हूँ जीवन पहियों में,
इन पहियों को रथ बनाकर
मुझे नई राह दिखाएँगे क्या?
मेरे राम आज आएँगे क्या?
काँप–काँप हाथ रंगोली रचते
कोने–कोने दीप हैं सजते
पर ऊँचे ताखों पर अँधेरे बसते,
उन ताखों पर निज हाथों से
दीप–दीप सजाएँगे क्या?
मेरे राम आज आएँगे क्या?

—अशुतोष कुमार सिंह

दीप–दीवालिया

मुठ्ठी भर
बिखरी हुई ज्योति,
बिखेरा था
जिसे सैकडों दीयों ने,
पुरज़ोर कोशिश कर
चुल्लू भर तेल
के सहारे,
वही ज्योति,
स्नेह स्नेह
हुई लुप्त
घटता गया शौर्य
दीपों का,
और
सर्वत्र व्याप्त
घुप्प अँधेरा . . .
सुबह
पौ फटने से पहले,
फट गई छाती
उसी अँधेरे की,
छिटकने लगी
किरनें रश्मि की
यत्र–तत्र–सर्वत्र,
हुआ लोप अकस्मात
कुहनियों के बल
रेंगता अँधेरा . . .
सैंकड़ों दीप नहीं
बस एक और बस एक
शक्ति पुंज,
शौर्य प्रतीक
सूर्य को लालायित
संपूर्ण विश्व . . .

—श्याम प्रकाश झा

    

 

 

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