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गाँव में अलाव
जाड़े की कविताओं को संकलन

गाँव में अलाव संकलन

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शीत लहर

शीत लहर है देश में प्रीत पिया परदेश
यादें बैठी धूप में खोले अपने केश

कल फिर आधी रात को आई उसकी याद।
मन पागल करता रहा खुद से खुद संवाद

कुछ चुप्पी कुछ बोलना कुछ अनबन कुछ प्यार
खोल पिटारी याद की प्रीत करे सिंगार।

सूखे पत्तों-सा जला बरगद तले अलाव
लगे सुलगने आज फिर मन के गीले घाव।

पता धुला बरसात में भूल गयी निज धाम
दिशाहीन उड़ती रही इक चिठ्ठी गुमनाम

चौरस्ते के बीच में ठिठके बोझिल पाँव
ना जाने किस ओर है निर्मोही का गाँव

हमने तो हर शब्द में ढाली अपनी प्रीत
दुनिया को उसमें दिखीं कविता गज़लें गीत

-शारदा मिश्रा

   

बैठ धूप में

बैठ धूप में
हरी मटर की घुँघनी खाना
जाडे का आनन्द यही है
रस गन्ने का
ताजा ताजा पीना
कोल्हाडो में जाना
इन उन बातों से मन बहलाना
बनने का भाव न मन में आने देना
आवाजाही का ताँता
रस का कडाह में पकना
झोंका झाना गुलौर का
आलू लेकर मन चाही संख्या में
पकने के लिए पहुँचना
छौंका किसी कमानी या पतली लकडी में
डाला फिर कडाह में
कही सुनी सानन्द कहानी
सीत बसन्त 'संख राजा' की
मन में माला नए नए स्वप्नों की
सुधि जानी अनजानी
ठाँव ठाँव का जीवन है कुछ नया अनोखा
कहीं सरल विश्वास है कहीं केवल धोखा

- त्रिलोचन

 

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