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माँ गंगे

 


 
कार्तिक मास में
बनारस के गंगातट पर
देखा है जितनी बार
सुंदर
और भी सुंदर
दिखी हैं
माँ गंगे।

करवा चौथ के बाद से
रोज ही
लगने लगते हैं मेले
तट पर
कभी नाग नथैया
कभी डाला छठ
कभी गंगा-महोत्सव
तो कभी
देव दीपावली।


स्वच्छ होनेलगते हैं
बनारस के घाट
उमड़ता है जन-सैलाब
घाटों पर
कहीं तुलसी, पीपल के तले
तो कहीं घाटों के ऊपर भी
जलते हैं मिट्टी के दिये
बनकर आकाश दीप।

अद्भुत होती है
घाटों की छटा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन।
कहते हैं
मछली बनकर जन्मे थे कृष्ण,
त्रिपुरासुर का वध किया था महादेवजी ने,
जन्मे थे गुरूनानक,
कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन

तभी तो
उतरते हैं देव भी
स्वर्ग से
बनारस के घाटों पर
मनाते हैं दिवाली
जिसे कहते हैं सभी
देव दीपावली।

माँ की सुंदरता देख
कभी कभी
सहम सा जाता है
मेरा अपराधी मन
यह सोचकर
कि कहीं
कार्तिक मास में
वैसे ही सुंदर तो नहीं दिखती माँ गंगे !

जैसे किसी त्योहार में
मेरे घर आने पर
मुझे आनंद में देख
खुश हो जाती थीं
और मैं समझता था
कि बहुत सुखी है
मेरी माँ।

-देवेन्द्र पांडेय
१७ जून २०१३

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