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गंगा का वरदान

 

 
कठिन तपस्या से मिला, गंगा का वरदान।
मोक्ष सगर सुत पा गए, पाया श्राप निदान।
पाया श्राप निदान, तारने सुरसरि आई,
युगों युगों से पाप, मनुज के हरती माई।
पर्व- तीज में स्नान, नष्ट हो सभी समस्या,
अर्जित करता पुण्य, बिन किए कठिन तपस्या। .

तीरथ गंगा तट बसे, बने मोक्ष के धाम।
पाप कलुष सब के हरे, बिना दिए कुछ दाम।
बिना दिए कुछ दाम, सभी के कष्ट निवारे,
पूजा तर्पण याग, अधूरे जल बिन सारे।
करे मनोरथ पूर, भेंट दे गए भगीरथ,
ऐसा देश महान, यहाँ हर तट पर तीरथ।

गंगा केवल नाम ही, भारत की पहचान।
संस्कृति और समाज की, यही आन औ शान।
यही आन औ शान, सभी ने महिमा गाई,
तारण हित अवतरण, सभी की प्यास बुझाई।
शमन करे सब व्याधि, दुखों से करती चंगा,
खेतों को जल सींच, अन्न से भरती गंगा।

-ज्योतिर्मयी पंत
१७ जून २०१३

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