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गंगा नहाते है

 

 
चलो चलकर मेरे महबूब अब गंगा नहाते हैं
वहीं डुबकी लगाते हैंवहीं पर डूब जाते हैं

वहीं पर एक डुबकी लेके हम गंगा से कह देंगे
करेंगे अब न कोई पाप ये कसमें भी खाते हैं

फलक के सारे तारे ही मिलेंगे हमको इस तट पर
बताकर अपनी चाहत हम इन्हें अपना बनाते हैं

जहाँ में और भी मेरे कई लगते हैंलेकिन ये
यही एक ऐसा मेला है जहाँ से जल भी लाते हैं

यहीं मुनियों का मेला है यहीं संतों का डेरा है
यहीं आकर सभी किरदार खुद में डूब जाते हैं

ये ऐसी आस्था है जो कभी नफरत नहीं देती
यहीं राधा के नगमें कृष्ण के भी गीत गाते हैं 

-मोहम्मद इम्तियाज गाजी
१७ जून २०१३

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