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नदी गंगा बड़ी पावन

 

 
नदी गंगा बड़ी पावन, इसे बहने से मत रोको
ये धड़कन जिन्दगी की है, इसे चलने से मत रोको

कभी सोचा ये मन का मैल, पानी से धुलेगा क्या
प्रदूषण मन के अन्दर का, निकल जाने से मत रोको

महाशिव की जटाओँ से, उतरकर बह चली भू पर
बनाकर बांध सुरसरिता, को इठलाने से मत रोको

बहुत दोहन हुआ नदियों, का अब पोषण करें सब मिल
रुकावट सब हटा दो और, बह जाने से मत रोको

ये गंगाजल हमें जीवन, मरण से मुक्त करता है
इसीके वास्ते जीवन को, मिट जाने से मत रोको

ऋचाएँ गूँजती थी वेद, की गंगा किनारे पर
ध्वजा ऊँची सदा भारत, की फहराने से मत रोको
 
-सुरेन्द्र पाल वैद्य
१७ जून २०१३

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