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एक साथ





 


एक साथ
गंगा की लहर फिर गिनें

सीढ़ियों पर बैठ धूपबाती जलाएँ
पानी पर दीप की कतार सजाएँ
मंदिर-ध्वनि हाथों में
जल भर सुनें

डाली में बहते चम्पे-से मन को
बाँधे उदास नावों में क्षण को
चाहों के सूत समय
को पकड़ बुनें

उंगली में भरें रोशनी की लकीरें
आओ, अंजुरी से जल-चम्पा चीरें
हरे-भरे दिन को हम
उमर भर गुनें

-शांति सुमन

२८ मई २०१२

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