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होली है!!


कैलेंडर पर आया फागुन


कैलेंडर पर आया फागुन
पर मन में पतझर छहरा है।

खाली-खाली गली नेह की
ठूँठ पड़े संवेदन
गुमे सड़ाधों के दफ्तर में
खुशबू के आवेदन

तिथियों में मुखरित बसंत
सन्नाटा उपवन में गहरा है।

चौपालें चुप-चुप सी
बरगद से रूठा अपनापा
स्वारथ की लू में झुलसा
भाईचारा, बहनापा

दिन उमंग-मस्ती वाले पर
बस्ती पर भय का पहरा है।

हाथ खेतिहर गये
जुटाने रोटी-दाल भिवंडी
हँसी गाँव की बाँध ले गई
शहरों की पगडंडी

कागज पर रंगों का पल
अंतस में कोरापन ठहरा है।


कंक्रीटों की बाड़ उगी
खो गई कहीं अमराई
सहमी–सहमी फिरे
कूक कोयल ने भी बिसराई

हो ली नारों में होली
अहसास मुआ, गूँगा, बहरा है।

-कृष्ण नन्दन मौर्य
१७ मार्च २०१४

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