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होली है!!


होळी रौ त्यौंहार
(राजस्थानी दोहे भावार्थ सहित)


मदन हिलोरा लेंवतो, सज’ सोळै सिणगार!
आयो म्हारै देश में, होळी रौ त्यौंहार!!
(मेरे देश में प्रणय-हिचकोलों से तरंगित, सोलह शृंगार से सुसज्जित होली का त्यौंहार आया है।)

तनड़ो तरसै परस नैं, प्रीत करै मनवार!
आवो प्यारा पीवजी, सांवरिया सिरदार!!
(देह स्पर्श को तरस रही है, प्रीत मनुहार कर रही है। हे सांवरे सरताज, प्रिय प्रियतम! आपका स्वागत है… आइये!)

होळी खेलण’ मिस गयो, कान्हो राधा-द्वार!
धरती सूं आभो मिळ्यो, स्रिष्टी सूं करतार!!
(होली खेलने के बहाने कन्हैया राधा के द्वार पर पहुँचे, मानो धरा से गगन का और सृष्टि से विधाता का मिलन हुआ।)

बाथां में कान्हो भर्यो, राधा हुई निहाल!
झिरमिर बरसी प्रीतड़ी, आभै रची गुलाल!!
कृष्ण कन्हैया ने बाहों में भरा तो राधिका निहाल हो गई। रिमझिम प्रीत बरसने लगी, आकाश में गुलाल रच गई।

भींजी राधा प्रीत में, कान्है रै अंग लाग’!
रूं-रूं गावण लागग्यो, सरस बसंती राग!!
कन्हैया के अंग से लग कर राधा प्रीत में भीग गई।
(रोम रोम से सुमधुर बसंती राग की स्वर लहरियां प्रस्फुटित हो उठीं।)

मन भींज्यो, तन भींजग्यो, गई आतमा भींज!
नैण मिळ्या जद नैण सूं, मुळक’ हरख’ अर रींझ’!!
(मुस्कुरा कर, हर्षित नयन जब नयन से मिलन में रींझ गए, तो मन भीग गया, देह भीग गई, प्राण कैसे अछूते रहते आत्मा भी भीग गई।)

फूलगुलाबी सांवरो अर राधाजी श्याम!
मोवै युगल सुहावणा, सुंदर ललित ललाम!!
(रंग रंग कर नीलवर्ण कन्हैया गुलाबी और गौरवर्ण राधाजी सांवले रंग के दृष्टिगत हो रहे हैं। यह सुंदर, लावण्यमयी, सुहावनी युगल छवि मोहित कर रही है।)

हिवड़ो रंगियो प्रीत सूं, छिब सूं रंगिया नैण!
होठ होठ सूं रंग दिया, कर’ चतराई सैण!!
(चतुराई के साथ प्राणप्रिय साजन कान्हा ने हृदय को प्रीत से, नेत्रों को निज छवि से और अधरों को स्वअधरों से रंग डाला।)

ओळ्यूं रंगदी काळजो, नैण रंग्या चितराम!
स्रिष्टी नैं विधना रंगी, अर राधा नैं श्याम!!
(इधर वृषभान लली राधिका को नंदनंदन कृष्ण ने रंगा कि
मधुर स्मृतियों-सुधियों से अंतःस्थल रंग गया। विविध लीला रूपों से चक्षु रंग गए। सृष्टि को साक्षात विधाता ने रंग डाला)

चोवै राधा नांव रस, पीवै गोकुळ गाँव!
बरसाणो छाकै अमी, सिंवर सलोणो श्याम!!
(पूरे ब्रह्माण्ड में हो रही राधा राधा नाम की रस वर्षा का रसपान कर’ गोकुल गाँव तृ्प्त हो रहा है। सलोने श्याम के सुमिरन से बरसाना गाँव जी भर कर अमृत छक रहा है।)

भगती रंग जमुना बहै, रंग्या बाल-नर-नार!
रसभीनी राधा रट्यां, तूठै क्रिषण मुरार!!
(भक्ति-रंग की बहती यमुना में बाल वृंद नर नारी रंग गए हैं।
रसभीनी राधा राधा रटन से कृष्ण मुरारी की सहज कृपा अनुकंपा मिल जाती है।)

राजेन्द्र स्वर्णकार
१७ मार्च २०१४

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