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साड़ी संग गुलाल

टेसू, महुआ, फागुनी, बिखरे रंग हजार
धरा वधू भी खिल उठी, कर सोलह सिंगार

बौराया मौसम हुआ, पवन करे हुड़दंग
पागल मनवा माँगता, सदा तुम्हारा संग

सिंधारे में भेज दूँ, साड़ी संग गुलाल
बिटिया का सुख सोच कर, मैया हुई निहाल

नथनी, कंगन बेचकर, ले आया सामान
रमुआ के मन में बसी, बिटिया की मुस्कान

शक्करपारे चट हुए, कम लगते पकवान
बना-बना कर हो गई, माँ कितनी हैरान

बस भल्लों की भूख है, ठंडाई की प्यास
घुमा फिरा कर मन बसे, गुझिया की ही आस

भेदभाव सब मिट गए, खोई है पहचान
रंग लगाएँ शौक़ से, ज़रा लगाकर ध्यान

देखभाल कर कीजिए, रंगों का उपयोग
सुघड़, सलौनी देह को, लगे न कोई रोग

सीधे-साधे की हुई, आड़ी-तिरछी चाल
होली तेरे रंग ने, कैसा किया कमाल

ख़ुशियों के रंग से रहे, हरदम मन आबाद
थोड़ा समय निकालकर, करिए प्रभु को याद

दरवाज़े की ओट में, टिकुआ खड़ा उदास
जाए ख़ाली हाथ क्या, अब बच्चों के पास

यूँ सारे संसार का, चाहा है कल्याण
तीन रंग हैं भारती, जिनपर अर्पित प्राण

- ज्योत्स्ना शर्मा
२ मार्च २०१५

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