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रंग हवाओं में

नशा अजब सा है
फागुन में भी
रंग हवाओं में है
मन में भी

सर से पाँव तलक
चलता फिरता गुलदस्ता
हँसी-ठिठोली से ज्यादा
है भी क्या सस्ता
सबकुछ सुन्दर है
दर्पण में भी

बगिया बौरे आम
लसी खेतों में सरसों
मौसम है अनुकूल
नेह जी भर कर परसों
राह निकलती है
अड़चन में भी

लाल गुलाबी पीला
चुनरी के आँचल में
स्याही सिमट रहे
बस आँखों के काजल में
सबकुछ शुभ-शुभ हो
जीवन में भी

- रविशंकर मिश्र "रवि"
२ मार्च २०१५

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