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होली

दिन के अंतिम प्रहर में
सागर की लहरों से
सूरज को देखा
होली खेलते।

ढेर सा गुलाल अपने
चेहरे पर मले
लहरों पर
रंगों की पिचकारी
फेंकता रहा।
लहरें भी आखिर
कितना बचतीं
भीग-भीग गईं
सारी क़ायनात में
रंग बिखर-बिखर गये
और मैं
उन रंगों में
डूब-डूब गयी!

- रेखा मैत्र
२ मार्च २०१५

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