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आओ खेलें होली

नई उमंगें लेकर आई
आओ, खेलें होली रे
मस्ती का आलम है फैला
हर कोई करे ठिठोली रे

खिले पलाश, महकता मधुवन
विविध भाँति सजते घर-आँगन
तरह तरह लगतीं मनभावन
घर घर सजी रंगोली रे।

बैर भुलाकर, सभी संग में
गहरे तक रँग गए रंग में
गालों पर ले इन्द्रधनुष
इत उत फिरते हमजोली रे

आज उम्र का भान कहाँ है
खुशियों का अवसान कहाँ है
सबके जिया घुली मिश्री सी
रस में भीगी बोली रे।

आकर गोरी पास पिया के
भेद खोलती सकल हिया के
धीरे धीरे नेह जाल बँध
गाँठ प्रेम की खोली रे।

नई उमंगें लेकर आई
आओ, खेलें होली रे।

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
२ मार्च २०१५

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