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रंगोत्सव

फागुन की आहट सुनी, प्रकृति भरे उत्साह
पवन चले मद मस्त यों, भूले अपनी राह

हरित रंग परिधान में, चूनर हो सतरंग
नवल वधू धरती सजे, जन-मन भरे उमंग

स्वर्ण कलश सिर पर धरे, गेंदे के ये फूल
आकर्षित मन को करें, दूर हरें हिय शूल

लाल रंग रस घोल के, डोले शाख पलाश
पर्वत घाटी में खिलें, महकें पुष्प बुराँश

हरित दूब भी हो उठी, बिछी धरा कालीन
पुष्प गुच्छ मकरंद में, मधुकर हैं लवलीन

रंगोत्सव की धूम है, उड़े अबीर गुलाल
स्नेह पूर्ण मिलके गले, रंग दें सबके गाल

बरसे फागुन रस भरा, सबके दिल को सींच
आपस में विश्वास की, डोर न तोड़ें खींच

पीताम्बर कान्हा रचें, राधा के संग रास
श्यामल यमुना तीर पर, प्रेम रंग परिहास

धवल वर्ण परिधान में, छींट दिए सब रंग
इंद्र धनुष की होड़ में, प्रतियोगी सब संग

नारंगी नीले हरे, पीत केसरी धार
श्याम बैंजनी रंग में, भीगें सब इकसार

नभ में जल कण जब मिलें, सूर्य रश्मियों संग
सात रंग के मेल से, करते सबको दंग

रंगों की महिमा बड़ी, दूर करें अवसाद
विविध भाव इनसे जुड़े, करते ये संवाद

- ज्योतिरमयी पंत
१५ मार्च २०१६

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