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इंद्रधनुषी रंग

तुम्हारी प्रीत के
इन्द्रधनुषी रंग में रँगकर
खिलखिलाने लगा है वसंत
सुरमई सपनों ने
खोल दिए हैं
गुलाबी फूलों वाले द्वार
जहाँ पीले शामियाने में
लाल-हरे रंग में डूबी तितलियों ने
कर ली है तैयारी उत्सव की
गायेंगे भँवरे कुछ चम्पई गीत
होली के...!

तुम देखना इस बार
सलेटी बादलों भरे आसमान से
उतरेंगी नेह की रुपहली परियाँ
मछलियाँ ताम्बई होकर
झील के नीलेपन में
देखेंगी अपना अक्स
और तलाशेंगी पता किसी नजरबट्टू का...!

पर्वतों से उतरते वक़्त
नदियाँ अपने किनारों पर
टाँक लेंगी
हरे मोतियों से मढ़े गोटे को
और बड़े आहिस्ता से
पैर रखेंगे मोरपंखी परिंदे
गुलमोहर के महकते गलीचे पर...!

सोचती हूँ
मैं भी पहन लूँ
चटकीले सिन्दूरी रंग का
जयपुरी लहँगा-चुनरी
और सफेद मोतियों का हार
सुनो!
तुम भी पहन लेना महावरी और
दूब से हरे रंग की बूटियों वाली शेरवानी
फिर हम तुम
डूबेंगे गुलाल की मस्ती में
और सिर से पाँव तक भीगेंगे
प्रीत के सतरंगी रंगों में...!

- आभा खरे
१५ मार्च २०१६

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