अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

होली रंग रंगीली

कर लें होली रंग रंगीली
सोच नई, नया रंग बनाएँ
भूल रंग-बदरंग कहानी
नवोल्लास की छटा खिलाएँ

दहन होलिका युग से करते
अबकी मन का अहम जला लें
रस्म मनाई थी बस अब तक
अब मन से तम दूर भगा लें

सब कुविचार हो जाएँ स्वाहा
सच्चे अर्थ में रीत निभाएँ

पापड़ गुझिया सेव रसीले
करें मधुर होली के दिन को
टेसू हरसिंगार की खुशबू
करें सुवासित तन संग मन को

मीठे स्वाद सुगंधित गुण को
रिश्तों में हम गूँथ जो पाएँ

देखा सब रंगो को जीकर
प्रेम रंग सा नहीं है कोई
फिर क्यों सब अपने में भूले
क्यों अपनो की संगत खोई

तुम डालो कुछ छींट प्रेम के
भीग उसी में सब खो जाएँ

सोचो जुगत लगे कुछ ऐसी
मिट जाए जो दरार पड़ी है
पार यहाँ से पार वहाँ तक
ढहे बीच दीवार खड़ी है

प्रिय का रंग चढ़े कुछ ऐसा
सारे रंग फीके हो जाएँ

- अलका प्रमोद
१ मार्च २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter