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फूलती सरसों

फूलती सरसों
कुहुकती कोयलें
आम बौराये
महकती कोपलें

ऋतु बसन्ती की
बजी है पैंजनी
पाँव में लिपटी
मधुर सी चाशनी

ज्वार बनते
जा रहे है हौसले

धूप के परचम
सुनहरे हो गए
पल उनींदे रस-
भरे दिन हो गए

गीत गन्धा
लेखनी के फैसले

सुस्त तन की
मस्त मन की आहटें
आ गया फागुन
बताशे बाँटने

ढ़ोल ताशे
मिल रहे जैसे गले

रंग उत्सव
राग धर्मी चेतना
बाँसुरी पिचकारियों
की अर्चना

फिर हठी
मधुमास के शिकवे गिले

- रंजना गुप्ता
१ मार्च २०१७

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