अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 

आ गई होली

आ गई होली लिए
रंगों की झोली

साँस महकी, चाल बहकी
देह में रति-दीप्ति लहकी
आम भी बौरा गए हैं
टेसुओं की आग दहकी

सुख से लहरा कर करे
सरसों ठिठोली

डोलती फिरती हवाएँ
घोलती हैं मन में महुआ
जाने किसकी धुन में पागल
हो गई है आज पछुआ

बाँटती फिरती है सब को
भंग की गोली

रंग की बदली है छाई
पुलक प्राणों में समाई
चंग लेकर संग में, सबने
बड़ी हुड़दंग मचाई

कुछ शरीफों की भी इसने
पोल है खोली

- उर्मिला उर्मि
१ मार्च २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter