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इस बार होली में

उमंगें हो रही हैं क्षार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

चुरा ली गंघ पुष्पों की, सभी लगता पतंगों ने
हरे पीले ध्वजों में है, बना लीं गैंग रंगों ने
व्यवस्थाएं हुईं लाचार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

हटाओ जो मुखोटे तो, दिखें सब कृष्ण रंगी हैं
धवल परिवेष हैं रक्तिम, सने जिम एक संगी हैं
रँगों का चल पड़ा व्यापार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

कुहुकती थी जहाँ कोयल, जमें बोलें वहाँ कागा
जमा था कोष मधु का जो, सयाना रिच्छ ले भागा
पड़े पत्थर लुटे फलदार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

दयारों में मयूरों की, कभी दिखती न ताथैया
निकल कर नीड़ से बाहर, सुरक्षित है न गौरैया
शिकारी बाज घूमे द्वार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

रखे हैं खेत गिरवी, बैल घर ज़र बैंक कर्जे में
वसूली ब्याज में जेवर, बिके हैं लोन हर्जे में
उजड़ते गाँव सब घरबार, फिर इस बार होली में
लगा फागुन हुआ मिसमार, फिर इस बार होली में

- हरिवल्लभ शर्मा
१ मार्च २०१८

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