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होली : माहिया


चैन अमन से खेलें
बागों की कलियाँ
खुशियों के हों मेले

ऐ री, सखि तुम आओ
रंगो की मस्ती
मेले में खो जाओ .

फिर मुखड़ा लाल हुआ
नयनों में सजना
मन आज गुलाल हुआ।

मनभावन यह होली
दो पल में भूले
वैरी अपनी बोली

रंग-भरी पिचकारी
छेड़ रहे सजना
सजनी, आज न हारी

क्यों मौसम ज़र्द हुआ
रूठ गयी कलियाँ
भौरों को दर्द हुआ

क्यों सूख रही डाली
चुभन भरी पाती
बाँच रहा है माली

तुमको कब था रोका
सपनो में मिलना
अँखियों को, दो मौका

मैंने पी है हाला
कवियों का जीवन
गीतों की मधुशाला
१०
दिल कितना बेमानी
समझ नहीं पाता
मन है बहता पानी
११
है भंग चढ़ी ऐसी
झूम रहे सजना
यह होली है देसी

- शशि पुरवार
१ मार्च २०२०

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