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आया पर्व पुनः होली का

मादक रस से सिंचित-वर्धित
कोकिल-ध्वनि से सृष्टि रिझाता
व्यथित, दुखित मन को हर्षाता
सुमधुर जीवन-राग सुनाता
आया पर्व पुनः होली का

सरवर-मध्य सुशोभित सरसिज
श्यामवर्ण अलि नर्तन करते
कुसुमदलों से अवनत लतिका
तरु के नीड़ों को खनकाता
आया पर्व पुनः होली का

सप्त वर्ण के इन्द्रधनुष पर
स्वर्णिम विद्युत-डोर चढ़ाए
ध्वनित दिशाएँ करता, बढ़ता
मेघ-वृष्टि से सृष्टि रिझाता
आया पर्व पुनः होली का

हरियाली बिखरा वसुधा पर
कलियों में नव भाव बसाए
खगदल में मुस्कान छिपाता
कवि का नव सन्देश सुनाता
आया पर्व पुनः होली का

आओ साथी! हम भी अपने
ऊँच-नीच के भेद भुलाकर
सभी परस्पर हाथ मिलाकर
कह पाएँ-खुशियाँ बिखराता
आया पर्व पुनः होली का

- दरवेश भारती
१ मार्च २०२०

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