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कोई इन्द्रधनुष

जीवन में तो रंग ही रंग हैं
कोई इन्द्रधनुष खिल जाए
बजे प्रीति की बंसी सुमधुर
जीवन हो फिर स्वप्निल जाए

मन वृन्दावन, तन गोकुल है
अधरों पर स्मिति व्याकुल है

तृषा-अशेष अभी है इतनी
हिय में आ प्रिय स्नेहिल जाए
चले जिधर उस डगर तिरोहित
पग-पग होता पंकिल जाए

मुग्धा मीरा हुई दिवानी
उर में अगन, नयन में पानी

जीवन का आनन्द अपरिमित
पल पल जब हो उर्मिल जाए
प्रीति सलोनी गलियारे की
घर-आँगन शामिल हो जाए

मोहन की मुरली की धुन सुन
बजे पाँव के घुंघरू रुन-झुन

देह कंचनी उर में थिरकन
संग साँवरे का मिल जाए।
प्रिय के रँग में रँगी गूजरी
भूल सभी पल बोझिल जाए

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ मार्च २०२०

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