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       फोन मिला

जबसे फोन मिला है उनका
होली पर निश्चित आएँगे
बजने लगी पाँव की पायल
सजने लगा आँख का काजल

कानों में कुछ बीती बातें
कहती हैं फागुनी हवाएँ
अनायास ही हँस पड़ती हूँ
करवट लेते बाएँ दाएँ

देह गंध जो भूल गई थी
बिना छुए ही याद आ गई
जल्दी फलित हुआ है मेरा
शिवरात्री वाला व्रत निर्जल

आज बहुत गाढ़ा लगता है
पाँवों कल रचा महावर
नीम बहुत गदराई लगती
मीठा लगता चिड़ियों का स्वर

कमरे से चौके की दूरी
आज अचानक कम लगती है
पानी भरकर लाती हूँ तो
बहुत छलकता गागर का जल

सासू माँ की कड़वी बातें
निकल रही हैं मुझको छूकर
भोली लगती ननद गई है
तेज नमक का ताना देकर

मुझे भाँग का नशा चढ़ा है
कदम कहाँ सीधे पड़ते है
भाँप रहीं हैं चाची बोलीं
बहू क्या हुआ चल धीरे चल

- अवध बिहारी श्रीवास्तव
१ मार्च २०२३
   

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