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        रंग निराले हैं

लाल, हरे, नीले, पीले
ये रंग निराले हैं  

रंगों की एक नदी बह रही
आओ हम डूबें
क्या जीवन इक बोझ बन गया
क्यों कर हम ऊबें
रंग हमारे जीवन में
करते उजियाले हैं

रंग लगे साबुन के जैसे
मन करते निर्मल 
नर से नारायण बन जाते
हो जाते उज्ज्वल
बढ़कर के उपयोग करो
ये देखेभाले हैं

जो रंगों से दूर गया
खुशियों से दूर हुआ
शायद वह अपने जीवन में
कुछ मजबूर हुआ
कुछ तो रोग समय दे जाता
कुछ हम पाले हैं

राग फाग का गाकर अंतस
कुछ बौराता है
और अचानक बीता बचपन
वापस आता है
जिनके भीतर रंग बचा
वे किस्मत वाले हैं

- गिरीश पंकज  
१ मार्च २०२३
   

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