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        भीगे गीली अली

देखो रंग भरा चहुँ ओर
भीगे गीली अली
रंग बरसे चहुँ ओर
भागे पीली अली

श्याम मोह में व्याकुल है ये
अँखियन जल ले आकुल है ये
भीगी अपने नयनों के जल
लागे सीली अली

मोहन मोहन टेर रही है
माला उसकी फेर रही है
आन मिले जब नंद के लाला
लागे जी ली अली

अंग अंग को श्याम किया है
मन को भी निष्काम किया है
माहुर पिया बिछोह का जबसे
लागे नीली अली

मन पिंजर से बँधा हुआ था
दुनिया में भी रमा हुआ था
मिटा मोह-माया का फंदा
पी से मिल ली अली

- स्वधा रवीन्द्र उत्कर्षिता 
१ मार्च २०२३
   

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