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			 आओ 
			पेड़ लगाएँ 
			 
			सारे जग के शुभचिंतक , 
			ये पेड़ बहुत उपकारी। 
			सदा-सदा से वसुधा इनकी 
			ऋणी और आभारी। 
			परहित जीने-मरने का  
			आदर्श हमें सिखलाएँ। 
			 
			फल देते, ईंधन देते हैं, 
			देते औषधि न्यारी। 
			छाया देते, औ‘ देते हैं 
			सरस हवा सुखकारी। 
			आक्सीजन का मधुर खजाना 
			भर-भर हमें लुटाएँ। 
			 
			गरमी, वर्षा, शीत कड़ी 
			ये अविकल सहते जाते, 
			लू, आँधी, तूफान भयंकर 
			देख नहीं घबड़ाते। 
			सहनशीलता, साहस की 
			ये पूजनीय प्रतिमाएँ। 
			 
			पेड़ प्रकृति का गहना हैं, 
			ये हैं श्रृंगार धरा का 
			इन्हें काट, क्यूँ डाल रहे 
			अपने ही घर में डाका 
			गलत
			राह
			को
			अभी
			त्याग कर 
			सही राह पर आएँ 
			
			-नागेश पांडेय संजय 
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 एक पैर पर 
जब से जनम लिया है मैंने 
एक पैर पर खड़ा हुआ हूँ 
 
आँधी -पानी-गर्मी-सर्दी 
झेल-झेल कर बड़ा हुआ हूँ  
सर पर सहता धूप, मगर मैं 
औरों को देता छाया हूँ 
साँस आखिरी तक परहित में 
रखता रत अपनी काया हूँ 
 
देह सूख जाती जब मेरी 
तब भी अंग-अंग कट-चिर कर 
आता काम सभी के, चाहे 
भले राख हो जाऊँ जलकर 
लेकिन कहता नहीं कभी कुछ 
रहता आया सदा मौन हूँ 
जड़ मेरी गहरती धरती में 
बतलाओ तुम मुझे, कौन हूँ 
 
-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी 
   
				
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				पेड़ 
				टिंकू से यह बोला पेड़ 
				टिंकू मुझको अधिक न छेड़ 
				 
				शायद तुझ पर काम नहीं 
				पर मुझको आराम नहीं 
				देख अभी नभ में जाना है 
				बादल से पानी लाना है 
				 
				जीवों को वायु देनी है 
				मिट्टी को आयु देनी है 
				ईंधन देना है बुढ़िया को 
				मीठे फल देना गुड़िया को 
				 
				अभी बनाना ऐसा डेरा 
				पक्षी जिसमें करें बसेरा 
				इंसानों के रोग हरूँगा 
				और बहुत से काम करूँगा 
				 
				टिंकू कर मत पीछा मेरा 
				मैं धरती का पूत कमेरा 
				 -डॉ. अश्वघोष  |