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पतंग

नभ में उड़ती इठलाती है
मुझको पतंग बहुत भाती है

रंग-बिरंगी चिड़िया जैसी
लहर-लहर लहराती है

कलाबाजियाँ करती है जब
मुझको बहुत लुभाती है

इसे देखकर मुन्नी-माला
फूली नहीं समाती है

पाकर कोई सहेली अपनी
दाँव-पेंच दिखलाती है

मुझको बहुत कष्ट होता है
जब पतंग कट जाती है
 

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक

उड़ी हवा के साथ

उड़ी हवा के साथ पतंग
लेकर अपनी डोरी संग

आसमान में चक्कर खाती
उसकी डोरी उसे नचाती

ढील बढाओ ऊपर जाती
डोरी खींचो नीचे आती

कुछ होती दुमदार पतंग
कुछ के नीले पीले रंग

डोरी टूटी गई पतंग
हवा ले गई अपने संग

— सजीवन मयंक

 



मैं हूँ कौन

मैं हूँ कौन मैं हूँ कौन
बूझो बूझो मैं हूँ कौन

ऊपर नीचे आगे पीछे
धागे को हाथों में भींचे

खेल बनाते रहते हो
मुझे नचाते रहते हो

कुछ न कहती तुमसे
करते जब भी तंग

बूझो बूझो मैं हूँ कौन
मैं हूँ वही पतंग

—मंजु महिमा भटनागर
 

 

 

 

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