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चलना सिखलाते

पापा चलना सिखलाते,
सारी दुनिया दिखलाते।
रोज बिठाकर कंधे पर-
सैर कराते मुस्काते।।

गलती हो जाए तो भी,
कभी नहीं खोना आपा।
सीख सुधारूँगा मैं ही-
गुस्सा मत होना पापा।।

-संजीव सलिल

मामा
पहने कुरता-पाजामा,
मुझको मन भाते मामा।
मुझे कार में बिठलाते-
सैर दूर तक करवाते।।

-संजीव सलिल

बाबा
बाबा ले जाते बाज़ार,
दिलवाते टॉफी दो-चार।
पैसे नगद दिया करते-
कुछ भी लेते नहीं उधार।।

मम्मी-पापा डाँटें तो
उन्हें लगा देते फटकार।
जैसे ही मैं रोता हूँ,
गोद उठा लेते पुचकार।।

-संजीव सलिल

पापा लाड़ लड़ाते

पापा लाड़ लड़ाते खूब,
जाते हम खुशियों में डूब।
उन्हें बना लेता घोड़ा-
हँसती, देख बाग की दूब।।

-संजीव सलिल

चाचा
चाचा मेरे संग खेलें,
मेरे सौ नखरे झेलें।
जैसे ही मैं थक जाता-
झट से गोदी में ले लें।।

- संजीव सलिल

नाना

खूब खिलौने लाते हैं,
मेरा मन बहलाते हैं।
नाना बाँहों में लेकर-
झूला मुझे झुलाते हैं।।

-संजीव सलिल

 

जेबखर्च

अच्छे प्यारे पापाजी,
जेब खर्च हमको दो जी।

नहीं मागते हम ज्यादा,
पर कम का करिये वादा।
 
हाथ जोड़ करते इसरार,
जेब खर्च का हो अधिकार।

आप हमारी है सरकार,
मत करिये हमसे इनकार।

बस कुछ रूपये ही दरकार,
मिलें, तो हो जीवन गुलजार।

अगर आपको हमसे प्यार,
पहली को हो, ये त्यौहार।

चाट पकौड़ी, चॉकलेट टॉफी,
पर ही नीयत नहीं खराब।

रखेंगे, अपनी कॉपी में,
हर पैसे का सही हिसाब।

सोच समझ कर खरचेंगे,
हर कीमत को परखेंगे।

बचत करें या कर दें खर्च,
मालुम हमको सबका अर्थ।

हाथ पसारे हम न भागें,
रोज आपके पीछे आगे।

कहीं तो अपनी भी हो मर्जी,
पेश यही करते हैं अर्जी।

— डॉ. रीता हजेला 'आराधना'

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