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भैया

मेरा भैया प्यारा है,
सारे जग से न्यारा है।
बहुत प्यार करता मुझको-
आँखों का वह तारा है।।


भैया

नटखट चंचल मेरा भैया,
लेती हूँ हँस रोज बलैया।
दूध नहीं इसको भाता-
कहता पीना है चैया।।

दोस्त

मुझसे मिलने आये दोस्त,
आकर गले लगाये दोस्त।
खेल खेलते हम जी भर-
मेरे मन को भाये दोस्त।।

-संजीव सलिल

मेरा भैया

मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।
छुटपन में सोया रहता था,
सपनों में खोया रहता था,
नन्हा–मुन्ना राज–दुलारा।
मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।

भूख लगे तो रोने लगता,
नहलाओ तो रोने लगता,
जैसे हो मम्मी ने मारा।
मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।

भोला सा मासूम सा मुखड़ा,
लगता जैसे चाँद का टुकड़ा,
सारे घर की आंख का तारा।
मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।

अभी खेलना काम है उसका,
पंडू भैया नाम है उसका,
उछल–कूद करता दिन सारा।
मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।

नटखट चंचल मेरा भैया,
मुस्काये तो लगे कन्हैया,
वारूं मैं इस पर जग सारा।
मेरा भैया बड़ा ही प्यारा।


—राकेश कौशिक

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