| 
      पूछ रही पता घर का 
      खड़ी चौराहे पर पूछ रही पता घर कावह नारी
 दिखाई दी उसे एक सड़क
 बोली यहाँ पिता का वास
 दिखी दूसरी मंज़िल, नहीं, यह पति का निवास है
 तीसरा द्वार जो बंद है– वह बेटे का है
 पूछ रही, "बोलो कहाँ मेरा घर है?"
 कुछ दिनों की हर जगह
 कुछ नहीं स्थायी उसका है
 बचपन में पिता, जवानी में पति
 बुढ़ापे में बेटा
 करे शोषित नारी को
 ढँग अलग रूप अलग
 शोषित होती नारी ही है
 कमज़ोर ये समाज संपूर्ण बुद्धि की दुनिया
 मरेगी हर बार नारी ही
 
 —कैलाश भटनागर
 
 |