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माँ तुम बहुत प्यार करती हो

 

 

 


सघन चिकित्सा-कक्ष में दाखिल
पूछ रही- "मोड़ा कैसा है?"
"बिना कलेजे फूँक रहा है,
खून- पसीने का पैसा है"
कहीं कर्ज में डूब न जाऊँ
माँ! तुम भी कितना डरती हो

जब भी घर से बाहर निकलूँ
आफिस या कलकत्ता- दिल्ली
धोबन मिले न छींके कोई
रस्ता काट न जाये बिल्ली
अखबारी खबरें सहमाती
माँ! तुम बहुत फिकर करती हो

दूर सड़क पर शूकर- कूकर
बैठ ओटले हड़काती हो
कूकर पकड़ न लें,शूकर के
नन्हें बच्चे, घबराती हो
अपनी छोड़ सभी की चिंता
माँ! तुम तो पूरी धरती हो.

जब तक 'कनु' खेलता बाहर
दरवाजे पर ही रहती हो
आँखों की सीमाओं में ही
उसे खेलने को कहती हो
बहू तुम्हें बेटी-सी, हम पर
माँ! तुम फूलों- सा झरती हो.

खबरें पढ़-सुन, हो जाती हो
गुमसुम-गुमसुम आत्मलीन-सी
आँखों में उगता सन्नाटा
दहशत फैली सियाचीन-सी
एक अनिश्चितता क्षण-क्षण की
माँ! तुम रोज-रोज क्षरती हो

शशिकांत गीते
३० सितंबर २०१३

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