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माँ के अनगिन रूप

 

 

 
जग में परिलक्षित होते हैं
माँ के अनगिन रूप।
माँ जीवन की भोर सुहानी
माँ जाड़े की धूप।

लाड़-प्यार से माँ
बच्चों की झोली भर देती
झाड़-फूँक करके
सारी बाधाएँ हर लेती

पा सानिध्य प्यास मिट जाती
माँ वह सुख का कूप।

माँ जीवन का मधुर गीत
माँ गंगा सी निर्मल
आशाओं के द्वार खोलता
माता का आँचल

समय समय पर ढल जाती माँ
बच्चों के अनुरूप।
जग में परिलक्षित होते हैं
माँ का अनगिन रूप।

- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
२९ सितंबर २०१४

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