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माँ जैसा होना

 

 

 

माँ होना ही
हो सकता है
माँ जैसा होना!

धरती, नदिया
धूप, चाँदनी, खुशबू
शीतलता
धैर्य, क्षमा
करुणा, ममता
शुचि-स्नेहिल वत्सलता

किसके हिस्से है
उपमा का-
यह अनुपम दोना!

अंजुरि में
आशीषों का, अक्षय-
अशेष सागर
अंतस में खुशियों का
अविरल
अंतहीन अंबर

तीन लोक से विस्तृत
माँ के-
आँचल का कोना!

पानी वाली
आँखों में आशा के
गुलमोहर
साँसों में सोंधे-सपने
सपनों में
सुख-निर्झर

और किसे आता है
सपनों मे
सपने बोना!

- जय चक्रवर्ती
१५ अक्तूबर २०१५

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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