अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन

 

माँ

चूल्हे की
जलती रोटी सी
तेज आँच में जलती माँ !
भीतर -भीतर
बलके फिर भी
बाहर नहीं उबलती माँ !

धागे -धागे
यादें बुनती ,
खुद को
नई रुई सा धुनती ,
दिन भर
तनी ताँत सी बजती
घर -आँगन में चलती माँ !

सिर पर
रखे हुए पूरा घर
अपनी -
भूख -प्यास से ऊपर ,
घर को
नया जन्म देने में
धीरे -धीरे गलती माँ !

फटी -पुरानी
मैली धोती ,
साँस -साँस में
खुशबू बोती ,
धूप -छाँह में
बनी एक सी
चेहरा नहीं बदलती माँ !

कौशलेन्द्र
७ दिसंबर २००९


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter