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ममतामयी
विश्वजाल पर माँ को समर्पित कविताओं का संकलन

 

ताँका
(जापानी कविता का एक रूप जिसमें ५-७-५-७-७ वर्ण होते हैं)

हरी दूब-सी
छाया बरगद-सी
सदा पावन
माँ कभी रामायण
और कभी गीता-सी।

नदी बनती
कभी बनती धूप
कभी बदली
माँ पावन गंगोत्री
जल से भी पतली।

ढल जाती है
घुल मिल जाती है
माँ तो माँ ही है
प्यार का खजाना है
वेदों ने बखाना है।

- डॉ. जगदीश व्योम


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