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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
आज की सुबह
 

आज की सुबह
उस रक्त बीज का फल है
जो उन्होंने बोया था
जिन्हें हम भूल रहे हैं

आज का सूर्य
उन असंख्य सूर्यों का रक्त पिण्ड है
जिनके चेहरे
पोस्टर बनकर
दीवार की दरार ढँक रहे हैं

ये हवायें निर्बन्ध
गंध से बोझिल
टहनियों पर मुस्काते
रक्ताभ गुलाब
उन नामों के अक्षर हैं
जिन्हे हम याद नहीं रख पाये।।

- गणेश गम्भीर
१० अगस्त २०१५


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