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 जन गण को समझ के मृदंग 
पीटें सब मनमाने ढंग 
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके 
 
संविधान की पुस्तक 
अनछुई, न खोली 
जाति वर्ग पंथवाद  
ही चन्दन रोली 
 
उन्नति के मार्ग करें बंद 
सदनों के होते हुड़दंग 
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके 
 
छिपा चुके कितने ही 
दामनों के दाग 
नित्य नयी ढपली  
पर, गायें वाही राग 
 
कुवें कुवें घोल रहे भंग 
बदलें नित सदरी के रंग 
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके 
 
सुनते हैं बच्चे ही 
करते नादानी 
चौथे खम्भों की तो  
अजब ही कहानी 
 
बिन माँझा काटते पतंग 
कागज से मढ़ देते चंग 
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके 
 
'सभी का विकास' रहे 
एक मूल मंत्र 
कुसुमित हो जन-जीवन 
लहके जनतंत्र 
 
लिख कर नव गीत नव प्रबंध 
लीक छोड़ छेड़नी है जंग 
प्रजातंत्र टुकुर टुकुर ताके 
 
-अनिल कुमार वर्मा 
१० अगस्त २०१५ 
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