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 जाने क्या -क्या अब तो ड्रामे  
होते हैं रजधानी में  
देख-देख कर ऐसा लगता  
गई भैंस अब पानी में ! 
 
हमने खून -पसीना देकर  
ये सरकार बनाई  
लम्बे -चौड़े जुमले सुन कर  
अपनी मति भरमाई  
लगने लगा  
बोलता ईश्वर  
खुद इनकी ही बानी में ! 
 
लंका में तो सब नौ गज़ के  
अब तो पड़ें दिखाई  
तिल भर को पासंग नहीं  
सब हैं मौसेरे भाई  
सब घोड़े  
हो गए निरंकुश  
लिप्त हुए मनमानी में ! 
 
बस इनका तो लक्ष्य यही था  
सत्ता को हथियाना  
झूँठे वादे और इरादे  
बढ़ -चढ़ कर दर्शाना  
ठगी-ठगी सी  
भोली जनता  
बस अपनी नादानी में ! 
 
ऐसा कब सोचा था  
सपने चूर -चूर होवेंगे  
अपनी बद किस्मत पर  
खुद ही फूट -फूट रोवेंगे  
पाँच बरस बीतेंगे  
अब तो  
इनकी ही अगवानी में ! 
 
- डॉ रामेश्वर प्रसाद सारस्वत   
१० अगस्त २०१५ 
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