अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
विश्व गगन में
 

विश्व गगन में गूँज उठे स्वर
भारत माँ की जय के

परिवर्तन का चक्र चला है
स्वप्न पुराने जोश नया है
हर भारतवासी के मन में
निज गौरव का भाव जगा है

निकल चुके हैं सबके मन से
भाव दासता भय के

संघर्षों की अमिट शृंखला
हँसकर सब कष्टों को झेला
सूर्य उगा मुक्ति का आखिर
आई आजादी की वेला

थाम तिरंगा चले वीर सब
गाते गीत विजय के

समझें आजादी की कीमत
इसी हेतु हों सभी समर्पित
एक ही स्वर में घोषित कर दें
सबसे प्रिय हमको है भारत

कभी नहीं होता कुछ हासिल
बिना शक्ति संचय के

आतंकवाद का निर्मम दौर
चला हुआ जग में चहुँ ओर
अखिल विश्व अब देख रहा है
आशा से भारत की ओर

अँगड़ाई लेकर उठ जाएँ
बढ़ें बिना संशय के

- सुरेन्द्रपाल वैद्य
१० अगस्त २०१५


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter