अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

लिया कृष्ण अवतार
     

 





 

 


 




 



आओ राधाश्याम अब, व्याकुल है संसार
सब दुष्टों का नाश कर, हरो पाप का भार

बंधन मातुल कंस का, जन्मे कारागार
रात अँधेरी मध्य में, लिया कृष्ण अवतार

खेल- खेल में ही किया, असुरों का संहार
अद्भुत लीलाएँ दिखा, सुखी किया संसार

लाज द्रौपदी की धरी, आन बढ़ाया चीर
मित्र सुदामा की हरी, निर्धनता की पीर

युग बीते बदले नहीं, गीता के उपदेश
जो अपनाएँ हृदय से, रहे न कोई क्लेश

दुनिया में कर्त्तव्य ही, केवल अपना धर्म
करें न फल की लालसा, सत्जीवन का मर्म

कोई हक़ छीने नहीं, चाहे हो परिवार
धर्म युद्ध भी उचित है, पाने को अधिकार

अमर प्रेम आदर्श है, राधा-श्याम प्रसंग
मुरली धुन पर गोपियाँ, रास मनाएँ संग

आकर दर्शन दीजिये, लेकर फिर अवतार
वादा जो हमसे किया जग के पालनहार
१०
बढ़ते अत्याचार से, विपदा में हों लोग
स्वयं उतर के स्वर्ग से, हर लो हर भव-रोग

-ज्योतिर्मयी पंत
२६ अगस्त २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter