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जगदीश तो वो है जो पीर हरे
     

 





 

 


 




 


१.
मन की सुन के मन मीत बने तब कैसे कहें तुम हो बहरे।
पर बात का उत्तर देते नहीं यही बात हिया हलकान करे।
सच में तुमको दिखते नहीं क्या अपने भगतों के बुझे चहरे।
दिखते हैं तो मौन लगाए हो क्यों, जगदीश तो वो है जो पीर हरे।।

२.
नव भाँति की भक्ति सुनी तो लगा इस जैसा जहान में तत्व नहीं।
जसुधा की कराह सुनी तो लगा तुमरे दिल में अपनत्व नहीं।
तुम ही कहिये घन की गति क्या उस में यदि होय घनत्व नहीं।
हर बार तुम्हारी ही बात रहे फिर तो नवधा का महत्व नहीं।।

३.
हर वक़्त यही दिल बोल रहा उन का ग़म क्या जो झिंझोड़ गये।
हमरा अपराध नहीं कुछ भी, फिर भी सिर ठीकरा फोड़ गये।
उस राह सिवाय विकल्प नहीं जिस राह पे मोहन मोड़ गये।
अब उद्धव बीन बजाओ नहीं, हरि छोड़ गये, दिल तोड़ गये।।

नवीन चतुर्वेदी
२६ अगस्त २०१३

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