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केशव ले लो जन्म फिर
     

 





 

 


 




 


केशव ले लो जन्म फिर, दुखी हुए हैं संत।
आकार कर दो पाप का, एक बार फिर अंत।।
एक बार फिर अंत, बढ़ रहे अत्याचारी।
बाप बन रहे कंस, मात भी कुछ हत्यारी।
‘यादव’ की है चाह, बेटियाँ देखें शैशव।
गायें कटती रोज, बचाओ आकर केशव।।


साँची अपनी प्रीत है, फिर भी मन बेचैन।
केशव तेरी याद में, बरस रहे हैं नैन।।
बरस रहे हैं नैन, प्यास दर्शन की लागी।
ग्वाल-बाल बेहाल, गोपियाँ बनी अभागी।
बाबा भये उदास, तरसती जशुदा चाची।
सुध ले लो घनश्याम, प्रीत है अपनी साँची।।


दूजा हुआ न आज तक, केशव-सा विद्वान्।
गीता में जिसने दिया, दुनिया भर को ज्ञान।।
दुनिया भर को ज्ञान, कर्म को महता देते।
जब-जब बढ़ता पाप, जन्म वो खुद ही लेते।
कह ‘यादव कविराय’, गुणों की होती पूजा।
केशव-सा विद्वान, जगत में हुआ न दूजा।।

-रघुविन्द्र यादव
२६ अगस्त २०१३

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