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सूर्य नूतन वर्ष का
 
सूर्य नूतन वर्ष का बस, है गली को मोड़ पर ही
आओ अगवानी करें, ले पृष्ठ कोरे साथ मन के

वेदना के पल गुजरते वर्ष ने जितने दिए थे
हम उन्हें इतिहास की अलमारियों में बंद कर दें
नैन में अटकी हुई हैं बदलियाँ निचुड़ी हुई जो
अलगनी के छोर पर उनको उठाकर आज धर दें

अर्थहीना शबरी की अब तोड़ कर पारंपरिकता
मन्त्र रच लें कुछ नए आतिथ्य के ले शुभ्र मनके

स्वप्न टूटे आस बिखरी जो सहेजी है बरस भर
आज इसका आकलन हम एक पल को और कर लें
पंख बिन चाहा भरें भुजपाश में अम्बर समूचा
आज तो परवाज़ की क्षमताओं पर कुछ गौर कर लें

जाँच ले हम पात्रता अपनी, कसौटी पर परख कर
ताकि अब बिखरें नहीं सँवरें नयन जो स्वप्न बन के

कामना झरती रही बिन भावनाओं की छुअन के
और घिरता रह गया था बाँह में कोहरा घना हो
इस बरस हर शब्द गूँजे होंठ की चढ़ बाँसुरी पर
ये सुनिश्चित कर रखेँ वह प्रीतिमय रस से सना हो

सूर्य नूतन वर्ष का जो ला रहा सन्देश पढ़ लें
और पल सुरभित करें हम वर्ष को मधुमास कर के

- राकेश खंडेलवाल
१ जनवरी २०१७

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