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नये साल में हम
 
 
चलो अब शपथ लें
नये साल में हम

किसी को यहाँ पर न कोई छलेगा
नहीं चाल कोई सियासी चलेगा
विषमता न रौंदे पकड़कर किसी को
नहीं वक्ष पर मूँग कोई दलेगा
रखे रब रहेंगे
उसी हाल में हम

दिलों से अँधेरा निकालें भगाएँ
उजारें दीये फिर दिवाली मनाएँ
जड़ों से उखाड़ें मरी मान्यताएँ
मनुज सुप्त हैं जो उन्हें हम जगाएँ
मिलाएँगे काला
नहीं दाल में हम

दिखाई हमें दे सभी में भलाई
चलो दें बढ़ावा पकड़कर कलाई
गिरों को उठायें सुपथ पर चलाएँ
न झगड़ा कहीं हो न हो अब लड़ाई
फँसायेंगे मछली
नहीं जाल में हम

दया नेह करूणा की दुनिया बनाएँ
सुभद भावनाओं के दीपक जलाएँ
नहीं हो निराशा कहीं भी धरा पर
नई आस का एक सूरज उगाएँ
रखें ढाई आखर को
रूमाल में हम

- मनोज जैन मधुर  
१ जनवरी २०१८

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