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 नव वर्ष रहा पधार
 
 
वीणा सितार औ’ सुर बहार
झंकृत होंते फिर बार बार
पगध्वनि लगी पहचानी सी
मृदुभाषी नार सयानी सी
नव वर्ष रहा देखो पधार
बहती रहती है समय धार

किरणों के रथ पर बैठ भोर
अग्रसर होगी नववर्ष ओर
उषा का जैसे उदय होगा
अभिवादन होगा ओर छोर
उत्सव होगा फिर आर पार
बहती रहती है समय धार

उत्साह प्रमोद संग लाए
दुख से न कोई कुम्हलाए
वंचित जो पड़े अँधेरों में
आयें किरणों के घेरों में
जीवन में पनपे नव बहार
बहती रहती है समय धार

जीवन जीना यों किश्तों में
खोये रहना उन रिश्तों में
जो आये वर्ष बदलते हैं
गम और हर्ष में ढलते हैं
अपकर्ष बाद फिर से बहार
बहती रहती है समय धार

- ओम प्रकाश नौटियाल  
१ जनवरी २०१८

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